| 1. | श्रीगणेशजी सर्व जगन्नियन्ता पूर्ण परमतत्त्व को भी कहते हैं।
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| 2. | अर्थात् मुझसे (परमतत्त्व से) परे कुछ भी नहीं है।
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| 3. | एक ही परमतत्त्व के दो रूप-गुरुदेव एवं माताजी
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| 4. | विद्या-अविद्या से परे वह परमतत्त्व है।
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| 5. | परमतत्त्व या ईश्वरानुभूति का मार्ग है।
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| 6. | के माध्यम से ईश्वरानुभूति या परमतत्त्व के साथ योग है।
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| 7. | ‘कालाग्निरुद्र ' उनसे कहते हैं एकमुखी रुद्राक्ष परमतत्त्व का रूप होता है.
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| 8. | अर्थात् परमतत्त्व (ब्रह्म) वह है, जिससे सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होती है;
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| 9. | ' ' 4 सूफी लोग परमतत्त्व को निराकार एवं निर्गुण ब्रह्म की भांति मानते है।
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| 10. | ‘ कालाग्निरुद्र ' उनसे कहते हैं एकमुखी रुद्राक्ष परमतत्त्व का रूप होता है.
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