वह शीघ्र ही पुस्तकालय कीअल्मारियों में अपवित्र और अप्रशंसित तथा धूलि से ढक गया.
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वह शीघ्र ही पुस्तकालय की अल्मारियों में अपवित्र और अप्रशंसित तथा धूलि से ढक गया।
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वह शीघ्र ही पुस्तकालय की अल्मारियों में अपवित्र और अप्रशंसित तथा धूलि से ढक गया।
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सच यह है कि 1945 में सरिता का पहला अंक छपने से ले कर अपने अंतिम समय तक उन्हों ने हिंदी को, समाज को, देश को जो कुछ दिया वह अप्रशंसित भले ही रह जाए, नकारा नहीं जा सकता.
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सच यह है कि 1945 मेँ सरिता का पहला अंक छपने से ले कर अपने अंतिम समय तक उन्होँ ने हिंदी को, समाज को, देश को जो कुछ दिया वह अप्रशंसित भले ही रह जाए, नकारा नहीँ जा सकता.