मिट तो सभी जाएँगे, क्या काफ़िर क्या मुस्लिम मगर ऐ नआकबत अंदेश (अपरिणामदर्शी) मुहम्मदी अल्लाह! तेरी इस कुरआन की वजेह से मुसलमान ज़वाल बहुत पहले होगा और काफ़िरों का वजूद बाद में.
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मै हैरान होकर हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति को देखता रहा, जो राजनीतिक रूप से देश के नेताओं को रास्ता बतलाता है, बेमतलब पहरों तकली चलाता है, प्रार्थना में मुर्दे गाने सुनता है, हिंदी-साहित्य-सम्मेलन का सभापति है, लेकिन हिंदी के कवि को आधा घंटा वक्त नही देता-अपरिणामदर्शी की तरह जो जी में आता है, खुली सभा में कह जाता है, सामने बंगले झांकता है!
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मै हैरान होकर हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति को देखता रहा, जो राजनीतिक रूप से देश के नेताओं को रास्ता बतलाता है, बेमतलब पहरों तकली चलाता है, प्रार्थना में मुर्दे गाने सुनता है, हिंदी-साहित्य-सम्मेलन का सभापति है, लेकिन हिंदी के कवि को आधा घंटा वक्त नही देता-अपरिणामदर्शी की तरह जो जी में आता है, खुली सभा में कह जाता है, सामने बंगले झांकता है!
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मै हैरान होकर हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति को देखता रहा, जो राजनीतिक रूप से देश के नेताओं को रास्ता बतलाता है, बेमतलब पहरों तकली चलाता है, प्रार्थना में मुर्दे गाने सुनता है, हिंदी-साहित्य-सम्मेलन का सभापति है, लेकिन हिंदी के कवि को आधा घंटा वक्त नही देता-अपरिणामदर्शी की तरह जो जी में आता है, खुली सभा में कह जाता है, सामने बंगले झांकता है!
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1939 ई 0 में उन्होंने लिखा-‘‘ मैं हैरान होकर हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति को देखता रहा, जो राजनीतिक रूप से देश के नेताओं को रास्ता बतलाता है, बेमतलब पहरों तकली चलाता है, प्रार्थना में मुर्दे गाने सुनता है, हिंदी साहित्य सम्मेलन का सभापति है, हिंदी के कवि को आधा घंटा वक्त नहीं देता-अपरिणामदर्शी की तरह जो जी में आता है, खुली सभा में कह जाता है, सामने बगलें झांकता है।