फिर कोबर्ग आया और वो भी निकल गई उस राह और मै अकेला..मांट्रियल गंत्वय के लिए..आगे बढ़ता..और मन गुनगुना रहा है फुरसतिया जी के मित्र 'प्रमोद तिवारी' का गीत: राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं अपने संग थोड़ी सैर कराते हैं।.....
22.
एक दिन घर पर अकेली थी इसलिए सोचा की पार्क में जाकर थोड़ी सैर कर लू! वही बच्ची पार्क में मिली! खुद को रोक नहीं पायी और उसके पास चली गयी! उसको खेलता देख, आँखें उसे अपलक निहारती रही! आपका नाम क्या है बेटा! वह कुछ पल ठहरकर सोचती हुई बोली ;;आ आंटी स्नेहा! जितना सुंदर नाम उतनी ही सुंदर स्नेहा गोल-मटोल प्यारी सी गुडिया! कुछ देर बाद बातें करते-करते मुझे स्नेहा का वो टेडी याद आया और में पूछ बैठी की आपके उस टेडी का क्या हुआ!